चिट्ठाजगत रफ़्तार

Wednesday, September 8, 2010

मेरी हर अदा में छुपी थी,मेरी हर तमन्ना

मेरी हर अदा में छुपी थी,मेरी हर तमन्ना


तुमने महसूस न की ये और बात है...............



मैं तो हर दम ख्वाब ही देखता रहा

मुझे ताबीर न मिली, ये और बात है...............



मैने जब भी बात करनी चाही किसी से

मुझे अल्फाज न मिले, ये और बात है...............



मै मेरी तमन्ना के समुन्दर में डूब तक निकला

मुझे साहिल न मिला, ये और बात है...............



कुदरत ने छोड़ रखी थी जिंदगी,कोरे कागज की तरह

किस्मत में कुछ और लिखा हो, ये और बात है...............

4 comments:

  1. मैने जब भी बात करनी चाही किसी से

    मुझे अल्फाज न मिले, ये और बात है......
    .
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    .
    .
    .

    ये तो और बात है कि
    जब कलम चल पड़ी तो तो भावनाओं को अल्फाज़ शब्द मिल गए


    अच्छे शब्द हैं। बढ़िया....

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