जाने अनज़ाने में एक दिन, मेरी उनसे मुलाकात हुई
बो भी चुप और हम भी चुप, बस दिल ही दिल में बात हुई
उनकी एक ऩजर, कर गई एक ऐसा असर
जैसे बिन सावन ,बिन वदली, आँगन में बरसात हुई
अब तो एक पल भी बो,मेरे बिन नहीं ज़ी सकते
अब तो उनकी एक अदा कलम,स्याही,दबात हुई
छुपा-छुपी के खेल में हम, दिल की बाजी हार गये
जीत-हार का खेल अनोखा,शतरंज की एक विसात हुई
मेरी आँखों के सामने, मेरे ख़त भी ज़ला दिये
दिल की किताब तो पढ ना पाये,अफसानों की क्या औकात हुई
हमें क्या पता था, वो इस क़दर रुश्बा हैं हमसे
इधर मौत की बात हुई,उधर मेंहदी की रात हुई
मेरी कब्र पर आते, तो शायद गम न होता
पर मेरी आखिरी इवादत खुदा से भी न वरदास्त हुई.....................
Saturday, May 29, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
wah wah bahutahi lajawaab
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
is so sweet and attractive
ReplyDelete