जब छोटे थे हम,
बोलना नहीं जानते थे
शब्दों को,
तराज़ू पर ज़ुबान की
तोलना नहीं जानते थे
तब हमारी माँ ,
हमको बोलना सिखाती थी
शब्दों के अर्थ,
सिखाती, समझाती थी।
लेकिन,
आज जब
हम बड़े हो गये हैं
अपने पैरों पर
खड़े हो गये हैं,
हर बात को,
अपने हिसाब से
तोलने लगे हैं
जरुरत से ज्यादा,
बोलने लगे हैं
और, ज्ञापन देते हैं
मम्मी,
तुम नहीं समझोगी..........
Friday, June 4, 2010
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दुनिया ऐसी ही है। अच्छी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteएक सच्छी बात कह दी है...
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