चिट्ठाजगत रफ़्तार

Wednesday, August 4, 2010

शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी,यदि नैतिक आधार नहीं है........

यह कविता उन्मुक्त जी की लेखनी से लिखित है.......

उनकी यह वाणी अपने माध्यम से तमाम पाठकों को समर्पित है..............


शील,विनय,आदर्श,श्रेष्ठता,तार बिना झंकार नहीं है............

शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी,यदि नैतिक आधार नहीं है........



आविष्कारों की कृतियों में,यदि मानव का प्यार नहीं है............

सृजनहीन विज्ञान ब्यर्थ है,प्राणी का उपकार नहीं है.............




माना,अगम,अगाध,सिन्धु है,संघर्षों का पार नहीं है..........

किन्तु डूबना मँझधारों में नाविक को स्वीकार नहीं है.............

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