चिट्ठाजगत रफ़्तार

Friday, June 4, 2010

कश़िश़ निगाहों की..................

उनकी निगाहों में कश़िश़ कुछ ,

इस कदर बाकी रही ।

इश्क के प्याले बने,

और आश़िकी साकी रही।

हर ऩजर में कत्ल,

सौ सौ बार होते हम गये।

दिल था घायल,

रुह थी घायल,

मौत बस बाकी रही...............................।

4 comments:

  1. मौत की क्या जरुरत..वो भी नहीं आती..मजे लेती है की इसे रोज रोज मरने दे। एकबार मार दिया तो फिर खाक मजा आएगा....

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  2. दिल था घायल,
    रुह थी घायल,
    मौत बस बाकी रही...............................।
    ऐसा ही होता है

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  3. bahut khub



    फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  4. वाह,बाह बहुत खूब ।

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