उनकी निगाहों में कश़िश़ कुछ ,
इस कदर बाकी रही ।
इश्क के प्याले बने,
और आश़िकी साकी रही।
हर ऩजर में कत्ल,
सौ सौ बार होते हम गये।
दिल था घायल,
रुह थी घायल,
मौत बस बाकी रही...............................।
Friday, June 4, 2010
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मौत की क्या जरुरत..वो भी नहीं आती..मजे लेती है की इसे रोज रोज मरने दे। एकबार मार दिया तो फिर खाक मजा आएगा....
ReplyDeleteदिल था घायल,
ReplyDeleteरुह थी घायल,
मौत बस बाकी रही...............................।
ऐसा ही होता है
bahut khub
ReplyDeleteफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
वाह,बाह बहुत खूब ।
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