बचपन के दिन भी कितने अच्छे थे,
तब तो केबल खिलौने टूटा करते थे................
बो,खुशियाँ भी,न जाने कैसी खुशियाँ थी,
कि तितलियों को पकड़कर उछला करते थे................
ख़ुद पाँव मारकर वारिश के पानी में,
हम अपने आप को भिगोया करते थे.....................
अब तो एक आँसू भी रुश्वा कर जाता है,
बचपन में तो दिल खोल कर रोया करते थे..................
Saturday, June 12, 2010
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nice
ReplyDeletebahut sundar rachna
ReplyDeleteसमय के साथ सब बदल जाता है .. बढिया लिखा आपने !!
ReplyDeleteबहुत भावनाप्रधान लिखा है..
ReplyDeletebahut acchhi rachna.
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