यही कोई एक दशक पहले की बात को कहने की कोशिश कर रहा हूँ,जो मेरे मन में थी पर आज लेखनी ने इस बात को अंजाम देने की जो ज़हमत उठाई उसके लिए इसका शुक्रगुज़ार हूँ।
बात उस दौर की है,जब देश में कारगिल युद्ध चल रहा था,शहादतों के संदेश आ रहे थे,तब में कक्षा 9 में पढता था,यह कविता उस समय जन्म ली,जब मेरे एक साथी को शहादत का संदेश मिला
अब मैं उन अरमानों को जाहिर करना चाहता हूँ,जो एक शहीद के बच्चे को अपने पिता से थे...................................
मेले पापा जल्दी आना,
याद तुम्हारी आती है,
वहुत दूर तुम चले गये हो,
मम्मी यही बताती है।
टॉफी लाना,बिस्कुट लाना
छोटी बाली गन भी लाना
मिलकर साथ लड़ेंगे दोनों,
मेले पापा जल्दी आना.............................।
Monday, June 7, 2010
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सुंदर अभिव्यक्ति !!
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