होकर जमीं का, आसमान की चाह क्यों करुँ
मैं तुझे पाने की, तमन्ना क्यों करुँ
मुझे खबर है,जुदाई तड़पाएगी तुझे हर पल
इसलिए बता दे, मैं तुझसे वफा क्यों करुँ
ईमान को चोट लगेगी,गर तू ना मिली मुझको
तुझे अपना बनाने की ,दुआ फिर मैं क्यों करुँ
तेरी मासूमियत को बनाया है ,रब ने मुहब्बत के लिए
तुझे न चाहने की खता, मैं क्यों करुँ
तेरी मेरी किस्मत की, राहें हैं जुदा-जुदा,
मैं फिर तेरा बन जाने की ,आरज़ू क्यों करुँ
माना कि मुहब्बत भरी नजर ,दिल पे गहरा असर करती है
तुझे प्यार से देखकर, तुझ पर कोई जादू क्यों करुँ
इतना दुखाया है दिल को तूने मेरे,
इतना रुलाया है मुझे
सब कुछ सहूँ,फिर भी,
तुझसे बे-इंतहा प्यार क्यों करुँ
Saturday, July 24, 2010
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बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeletenice poem........
ReplyDeleteoscem...........