चिट्ठाजगत रफ़्तार

Friday, April 23, 2010

खुद को पहचान

याद रख जो तुझसे झुककर मिला होगा
ज़ाहिर है उसका कद तुझसे बड़ा होगा
झुकने में बड़प्पन और शान है
वर्ना अकड़ना तो मुर्दे की पहचान है

Friday, April 16, 2010

मजबूरी...

नहीं खिंच रहा रिक्शा फिर भी खींच रहा हूँ
स्वेद कणों से घर की बगियां सींच रहा हूँ
नज़र डालते हैं लड़के जवान बेटी पर
मजबूरी में अपनी आखें मीच रहा हूँ.