चिट्ठाजगत रफ़्तार

Friday, June 25, 2010

बो मिले ना मिले,मुहब्बत तुम करते रहना................

बो मिले ना मिले,


मुहब्बत तुम करते रहना................

डूब ना जाओ तब तलक,

आहें तुम भरते रहना......................

जिन्दा रहते हैं सब,

यहाँ मिलने की ख्वाहिश लेकर

होना पड़ जाए उसे मजबूर,

पल-पल तुम मरते रहना......................

गम भरे हैं तेरे,

इन दिल की गहराइयों में

रोते-रोते भर जाए समुन्दर,

पर तुम हँसते रहना........................

हैं इश्क के धागे बड़े नाजुक,

ये तुम्हें छोड़ देंगें

इबादत मानकर खुदा की,

उनमें तुम फँसते रहना...........................

कर रही है बो तेरा इन्तज़ार,

कहीं न कहीं

अश्क हों न उसके बरबाद,

तुम डरते रहना..............................

बो मिले ना मिले,

मुहब्बत तुम करते रहना................

मरने का मज़ा तो तब है,....................

कोई हँसा कर रोए ,

कोई रुला कर रोए,

कोई दिखा कर रोए,

कोई छुपा कर रोए,

तेरी हँसी में हँसे,लेकिन.........

तरस खा कर रोए,

आँसू सूख़ गए आँखो से,

पानी में नहा कर रोए,

दिल को न मिला सुकून,फिर भी

उनके खतों को ज़ला कर रोए,

मरने के वारे में,जब भी सोचा,

मौत की सच्चाई पर रोए,

लेकिन..................

मरने का मज़ा तो तब है,

ज़ब कातिल भी ज़ऩाज़े पर आकर रोए........................।

Saturday, June 12, 2010

अब तो,एक आँसू भी रुश्वा कर जाता है....................

बचपन के दिन भी कितने अच्छे थे,

तब तो केबल खिलौने टूटा करते थे................

बो,खुशियाँ भी,न जाने कैसी खुशियाँ थी,

कि तितलियों को पकड़कर उछला करते थे................

ख़ुद पाँव मारकर वारिश के पानी में,

हम अपने आप को भिगोया करते थे.....................

अब तो एक आँसू भी रुश्वा कर जाता है,

बचपन में तो दिल खोल कर रोया करते थे..................

Monday, June 7, 2010

अरमानों की भीड़ में एक अरमान..........मेरा भी

यही कोई एक दशक पहले की बात को कहने की कोशिश कर रहा हूँ,जो मेरे मन में थी पर आज लेखनी ने इस बात को अंजाम देने की जो ज़हमत उठाई उसके लिए इसका शुक्रगुज़ार हूँ।


बात उस दौर की है,जब देश में कारगिल युद्ध चल रहा था,शहादतों के संदेश आ रहे थे,तब में कक्षा 9 में पढता था,यह कविता उस समय जन्म ली,जब मेरे एक साथी को शहादत का संदेश मिला

अब मैं उन अरमानों को जाहिर करना चाहता हूँ,जो एक शहीद के बच्चे को अपने पिता से थे...................................

मेले पापा जल्दी आना,

याद तुम्हारी आती है,

वहुत दूर तुम चले गये हो,

मम्मी यही बताती है।

टॉफी लाना,बिस्कुट लाना

छोटी बाली गन भी लाना

मिलकर साथ लड़ेंगे दोनों,

मेले पापा जल्दी आना.............................।

Friday, June 4, 2010

कश़िश़ निगाहों की..................

उनकी निगाहों में कश़िश़ कुछ ,

इस कदर बाकी रही ।

इश्क के प्याले बने,

और आश़िकी साकी रही।

हर ऩजर में कत्ल,

सौ सौ बार होते हम गये।

दिल था घायल,

रुह थी घायल,

मौत बस बाकी रही...............................।

मम्मी, तुम नहीं समझोगी.................

जब छोटे थे हम,

बोलना नहीं जानते थे

शब्दों को,

तराज़ू पर ज़ुबान की

तोलना नहीं जानते थे

तब हमारी माँ ,

हमको बोलना सिखाती थी

शब्दों के अर्थ,

सिखाती, समझाती थी।

लेकिन,

आज जब

हम बड़े हो गये हैं

अपने पैरों पर

खड़े हो गये हैं,

हर बात को,

अपने हिसाब से

तोलने लगे हैं

जरुरत से ज्यादा,

बोलने लगे हैं

और, ज्ञापन देते हैं

मम्मी,

तुम नहीं समझोगी..........