चिट्ठाजगत रफ़्तार

Thursday, December 30, 2010

ज़िन्दगी को ढूंढता मैं कहां- कहां गया..मौत का आलम मिला मैं जहां- जहां गया

ज़िन्दगी को ढूंढता मैं कहां- कहां गया


मौत का आलम मिला मैं जहां- जहां गया



मुस्कराहट में दबी- दबी सी एक आह थी

कांपते लबों में एक अनबुझी सी चाह थी

सांस- सांस में छिपी दर्द की कराह थी

खौफ़ से भरी डरी- डरी हर इक निगाह थी



ज़िन्दगी को ढूंढता मैं कहां- कहां गया

मौत का आलम मिला मैं जहां- जहां गया



जो बुलन्द दिल दिखे, उनमें खाइयां मिलीं

पाक हाज़ियों के घर भी सुराहियां मिलीं

डोलतीं हसीन रुख पे हवाइयां मिलीं

क्रीम पाउडर तले लाख झाइयां मिलीं



ज़िन्दगी को ढूंढता मैं कहां- कहां गया

मौत का आलम मिला मैं जहां- जहां गया



ज़िन्दगी का ये तमाम ताम- झाम झूठ है

इम्तिहान झूठ, रस्म-ए-इनाम झूठ है

पांच साल के लिये चुनावे-आम झूठ है

दावा कि हुकूमत-ए-अवाम है ये झूठ है



ज़िन्दगी को ढूंढता मैं कहां- कहां गया


मौत का आलम मिला मैं जहां- जहां गया

Tuesday, December 14, 2010

है कितना आसां कह देना.....कि बीत गई सो बात गई........

है कितना आसां कह देना.....
कि बीत गई सो बात गई........
एक दाग उम्र को दे कर के
मुझ को ये बीती रात गई.....।


कैसे कह दूं माज़ी मेरा
कल परदे में छिप जायेगा
एक पहर वक्त की घड़ी चली
 और सूत उम्र का कात गई....।


है जाल ज़िन्दगी का ऐसा.....
मर कर ही कोई निकल पाया
हर वार गया खाली मेरा...
 खाली मेरी हर घात गई....।


हम खेल ज़िन्दगी का खेले .....
पर आखिर ये अन्ज़ाम हुआ
न आर हुए न पार हुए
 मेरी सब शह और मात गई....।


हमसफ़र बने वो कुछ ऐसे
कि संग चले और बिछड़ गये
रफ़्तार मुख्तलिफ़ थी अपनी....
 मैं डाल डाल वो पात गई....।


जब पेट भरा हो फ़ाके से
 तो क्या कलाम लिख पायेगा
मुफ़लिसी मुझ पर ऐसी छाई....
 कि कलम गई और  दवात गई..........।।

Monday, December 13, 2010

शायर के दिल की मत पूछो.... उड़ने का विस्तार बहुत है.....

कापी भर गई कहां लिखूं ......
अब लिखने की रफ़्तार बहुत है
शायर के दिल की मत पूछो....
उड़ने का विस्तार बहुत है।।


मन करता है लगातार
 महफ़िल में अपनी गज़ल सुनाऊं....
अन्य सुखनबर कहते हैं....
बस करो एक ही यार बहुत है।।


सात सुरों, तीनों सप्तक में.....
गायन करने का मन चाहे
सुनने वाले कहते हैं कि.....
 वीणा का एक तार बहुत है।।


लिखना अपना रोकूं कैसे.....
वाद्य को कैसे बहलाऊं
रुके लेखनी स्वर कुंठित हो.....
 कलाकार को मार बहुत है।।


कैसे करूं तमन्ना ज़ाहिर......
 महफ़िल को कैसे बतलाऊं...
ताना दें सब मुझ को........
 कि अपने को समझे फ़नकार बहुत है.।।

Tuesday, December 7, 2010

वफ़ा करने वाले वो आशिक कहाँ हैं.........

वफ़ा करने वाले
वो आशिक कहाँ हैं।

जफ़ाएं,
 सभी के दिलों में निहां हैं।।


पुलिस,
 लीडरों की तवायफ़ बनी है।
शरीफ़ हैं सलाखों में,
 गुन्डे रिहा हैं।।


अदालत दबी है,
हुकूमत के आगे।
कहने को,
 कानून पलते वहां हैं।।


वकीलों के आगे,
 न कोई टिका है।
सच और सफ़ेदी को,
करते सियाह हैं।।


प्रजातन्त्र गणतन्त्र,
 बस नाम के हैं।
शरीफ़ आज जीते,
 डरे से यहां हैं।।


अब खत्म कर दो,
चुन चुन के सारे।
दहशतफ़रोशों के,
अड्डे जहां हैं. ।।







Sunday, November 21, 2010

अरे,सभँल जाओ,भाई,कभी हम भी इंसान थे............

एक दिन


गुजरे

हम शमसान से........

शायद

इस बात से

हम अनजान थे..........

रास्ते,

गलियाँ भी

वहुत सुनसान थे..........

तभी अचानक,

ठोकर लगी,

एक मचान से............

कपड़े झाड़कर,

उठे,बढे..

धम और शान से...........

मुर्दे की

बात को ,सुना

वहुत ही ध्यान से............

मुर्दे के भी,

सहसा,

यही वयान थे,

अरे,सभँल जाओ,

भाई,

कभी हम भी इंसान थे............

Saturday, October 16, 2010

गर्व से कहो,हम हिन्दू हैं....................

जिस हिन्दू ने नभ में जाकर, नक्षत्रों... को दी हे संज्ञा..!
जिसने हिमगिरी का वक्ष चीर, भू को दी हे पावन गंगा..!!
जिसने सागर की छाती पे, पाषाणों को तैराया हे..!
वर्तमान की पीड़ा को हर, जिसने इतिहास बनाया हे..!!
जिसके आर्यों ने घोष किया, क्रिन्वंतों विश्वार्य...म का..!
जिसका गौरव कम कर न सकी, रावण की स्वर्णमयी लंका..!!
जिसके यज्ञों का एक हव्य, सौ सौ पुत्रों का जनक रहा..!
 जिसके आँगन में भयाक्रांत, धनपति बरसाता कनक रहा..!!
जिसके पावन बलिष्ठ तन की रचना, तन दे दधीच ने की..!
राघव ने वन वन भटक भटक, जिस तन में प्राण प्रतिष्ठा की..!!
जौहर कुंडों में कूद-कूद, सतियों ने जिसे दिया सत्व..!
गुरुओं गुरुपुत्रों ने जिसमे, चिर्बलिदानी भर दिया तत्त्व...!!
वो शाश्वत हिन्दू जीवन क्या? स्मरणीय मात्र रह जाएगा..???
इसकी पावन गंगा का जल, क्या नालों में बह जाएगा...???
 इसके गंगाधर शिवशंकर, क्या ले समाधी सो जायेंगे....???
इसके पुष्कर, इसके प्रयाग.. क्या गर्त मात्र हो जायेंगे....???
 यदि तुम ऐसा नहीं चाहते, तो फिर तुमको जागना होगा..!!!
हिन्दू-राष्ट्र का बिगुल बजाकर, दानव-दल को डरना होगा..!

Thursday, September 30, 2010

वतन ज़ब खून माँगेगा,तुम्हारे पास क्या होगा.....

तुम्हारी सरपरस्ती में

हुए लाखों सर धड़ से जुदा

तुम्हारी ही सरपरस्ती में

बदली है,हिन्द की फिजा

मज़हब की खूनी चादर ओड़ने वालो,

सच्चाई से मुँह मोडने वालों,

मन्दिर वालों, मस्ज़िद वालों,

तेलगू,मलयालम वालों

तुम्हारी आने वाली नस्लों का न जाने क्या होगा...........

वहा लो खून सड़कों पर ,

मगर यह तो बतला दो,

वतन ज़ब खून माँगेगा,तुम्हारे पास क्या होगा.....

Thursday, September 23, 2010

अरे......क्यों जलाते हो देश को धर्म की आग में........

कोई राम कहता है

कोई रहमान कहता है.......

कोई अल्लाह से डरता है

कोई भगवान से डरता है..........

कोई कुरआन पढ़ता है

कोई गीता को पढ़ता है.............

जो पीड़ा सूर सहता है

वही रसखान सहता है............

अरे......क्यों जलाते हो देश को धर्म की आग में........

अरे......क्यों जलाते हो देश को धर्म की आग में........

हमारे रक्त की धारा में हिन्दुस्तान वहता है...................

Monday, September 13, 2010

आज मेरा जन्मदिन है-एक बिशेष अंक..................

आज ख्याल आया कि....


चुप ही रहूँ,

पर ये दिल नहीं माना

शायद ये था अनजाना

कहते हैं ना..........

दिल तो बच्चा है,

शायद,

यह वक्तव्य

साकार कर दिया

और इस कलम को

लाचार कर दिया

सोचता हूँ

जन्मदिन पर,

लोगों ने शुभकामनाएँ देकर

अपना काम कर दिया.......

पर इस जिंदगी का क्या.....

इसने भी तो,

एक साल नीलाम कर दिया.........

खैर,

वक्त के आगे तो,

इंसान अक्सर हार जाया करते हैं.......

लेकिन अभी

वह भी मौजूद हैं,

जो हँसते-हँसते.........

शतक मार जाया करते हैं...........

आपकी ये शुभकामनाएँ.........

मेरे लिए किसी उपहार से कम नहीं...........

शायद,

हमसे है ये जमाना,

जमाने से हम नहीं..............

Wednesday, September 8, 2010

मेरी हर अदा में छुपी थी,मेरी हर तमन्ना

मेरी हर अदा में छुपी थी,मेरी हर तमन्ना


तुमने महसूस न की ये और बात है...............



मैं तो हर दम ख्वाब ही देखता रहा

मुझे ताबीर न मिली, ये और बात है...............



मैने जब भी बात करनी चाही किसी से

मुझे अल्फाज न मिले, ये और बात है...............



मै मेरी तमन्ना के समुन्दर में डूब तक निकला

मुझे साहिल न मिला, ये और बात है...............



कुदरत ने छोड़ रखी थी जिंदगी,कोरे कागज की तरह

किस्मत में कुछ और लिखा हो, ये और बात है...............

Wednesday, August 11, 2010

हम क्या करते समझौता,जो अमृतसर-लाहौर ना कर सके.......

मैने तो एक दुआ माँगी थी,उनसे,

पर बो,एक भी इबादत पर गौर ना कर सके................

मैने तो किनारे पर कश्ती माँगी थी,

पर बो,तूफानों का रुख कहीं और ना कर सके.................

मैने तो एक महफिल माँगी थी,उनसे

पर बो,शबाब,शराब का दौर ना कर सके.....................

सोचा था समझौता कर लेंगे,जिंदगी से..

पर उसका क्या,जो अमृतसर-लाहौर ना कर सके................

बो क्या समझने की कोशिश करते मेरे जज्बात को,

जो अपने ही सिक्के की तौल ना कर सके..................

जख्म इतने मिले कि शायद मौत भी कम थी,

पर बो इरादों को कमजोर ना कर सके..............

Wednesday, August 4, 2010

शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी,यदि नैतिक आधार नहीं है........

यह कविता उन्मुक्त जी की लेखनी से लिखित है.......

उनकी यह वाणी अपने माध्यम से तमाम पाठकों को समर्पित है..............


शील,विनय,आदर्श,श्रेष्ठता,तार बिना झंकार नहीं है............

शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी,यदि नैतिक आधार नहीं है........



आविष्कारों की कृतियों में,यदि मानव का प्यार नहीं है............

सृजनहीन विज्ञान ब्यर्थ है,प्राणी का उपकार नहीं है.............




माना,अगम,अगाध,सिन्धु है,संघर्षों का पार नहीं है..........

किन्तु डूबना मँझधारों में नाविक को स्वीकार नहीं है.............

Saturday, July 31, 2010

बेरोजगारी के दौर में साथ छोड़ती ये फिज़ाएँ भी.................

हर रात सोचता हूँ,

एक नई सुबह आये,

सुबह तो हर रोज़ आती है,पर

बैरंग चली आती है

फिर सोचा,कि

ये रात बदल जाए,

पर,ख्वाव वदलकर,

सुनसान चली आती है.......

अब तो ये दिन-रात,

भी अपने न रहे,

जैसे,आँखों में,ओझल,

सपने ना रहे,

मंजिल की तलाश है,

शायद,मिल जाये

पर,रास्तों की भी,

फिज़ाएँ बदल जाती हैं..........

फिर सोचा,

इस किस्मत को बदला जाए

पर इसका भी क्या भरोसा,

कभी भी,शादी होकर,

ससुराल चली जाती है............

बैठे हैं वक्त के सहारे,

शायद बदल जाये

और,ये बोझिल जिन्दगी,

सचमुच ओझल हो जाये....

पर,हमने तो वक्त का,

वह रुख भी देखा है

जीते आदमी को,मौत की दुआ,

करते देखा है

लेकिन,कश्ती की तरह किनारे का इंतजार है.........

नाविक हूँ,लहरों से लड़ना स्वीकार है.............

Saturday, July 24, 2010

मुहब्बत भरी नजर दिल पे गहरा असर करती है......................

होकर जमीं का, आसमान की चाह क्यों करुँ


मैं तुझे पाने की, तमन्ना क्यों करुँ

मुझे खबर है,जुदाई तड़पाएगी तुझे हर पल

इसलिए बता दे, मैं तुझसे वफा क्यों करुँ

ईमान को चोट लगेगी,गर तू ना मिली मुझको

तुझे अपना बनाने की ,दुआ फिर मैं क्यों करुँ

तेरी मासूमियत को बनाया है ,रब ने मुहब्बत के लिए

तुझे न चाहने की खता, मैं क्यों करुँ

तेरी मेरी किस्मत की, राहें हैं जुदा-जुदा,

मैं फिर तेरा बन जाने की ,आरज़ू क्यों करुँ

माना कि मुहब्बत भरी नजर ,दिल पे गहरा असर करती है

तुझे प्यार से देखकर, तुझ पर कोई जादू क्यों करुँ

इतना दुखाया है दिल को तूने मेरे,

इतना रुलाया है मुझे

सब कुछ सहूँ,फिर भी,

तुझसे बे-इंतहा प्यार क्यों करुँ

Wednesday, July 21, 2010

प्यार में छुप-छुप कर मिलने का मज़ा कुछ और है....................

जब उनको मेरी याद आया करेगी,


तब वो मेरी गज़ल गुनगुनाया करेगी

उठाकर देखेगी कभी तस्वीर मेरी,

फिर उसे सीने से लगाया करेगी

ज़ब भी नज़र आयेगीं मेरी निशानियाँ,

उनको दामन में छुपाया करेगी

बीते दिनों की बीती कहानी,

छुप-छुप के गैरों को बताया करेगी

रखा है उसने अंधेरे में जो “प्रकाश”,

भूल पर अपनी पछताया करेगी.................

Sunday, July 18, 2010

लोग फिर भी,आद़ाब करते हैं..........

मेरी मासूमियत का वो ऐसा,


ज़बाब देते हैं,

जैसे मेरी जिन्दगी से हर लम्हे का,

हिसाब लेते हैं,

जिनको समझते थे,सच का देवता वही,झूठ का,

दबाव देते हैं,

चेहरे पढ़ने में तो लग गई उम्र तमाम,अब चेहरे को,

किताब कहते हैं,

बालों को रंगने से नहीं ढक जायेगा वुढापा,फिर भी,

खिज़ाब करते हैं,

दिल में दगा,होठों पर वफा, लोग फिर भी,

आद़ाब करते हैं,

Friday, July 16, 2010

तुम क्यों लगाते हो आँखों में काज़ल इतना.......

पल-पल नज़र में


मुझे भर रहा है कोई.........

दिल पर असर गहरा,

कर रहा है कोई.........

बो क्यों लगाते हैं,

काज़ल आँखों में,इतना

जिसके लिए हर पल,

ज़ल रहा है कोई..................................,

हदों की हदें,

पार कर रहा है कोई,

तुम्हें हद से भी ज्यादा,

प्यार कर रहा है कोई

तुम मुस्कुरा रही हो,

इतना,पता नहीं,

तुम्हारी हर अदा पर,

मर रहा है कोई.............................................।

Sunday, July 11, 2010

एक रात ,वरसात के साथ........

चलते –चलते उम्र बीत गई,


अब बीत ना जाये ये रैना भी...........

सोचा था कुछ कहें उनसे,

बाकी है दिल में कहना भी...........

अरमानों का जाल है मन में,

बचा है पूरा करना भी..............

माना,अगम,अगाध समुन्दर है,

पर, नाविक का काम है खेना भी..........

माँगने से नहीं डरते उस खुदा से,

उसका तो काम है देना भी..............

जिन शब्दों से कविता बनती है,

उन शब्दों को नहीं है खोना भी..............

अभी तक कटी,जैसे भी कटी,

बाकी है,मसीहा बनकर जीना भी.............

एक पैमाने में काँप जाते हैं,जिनके अधर,

बाकी है अभी,मधुशाला को पीना भी............

लिखते-लिखते सुबह हो गई,

इन आँखों को है सोना भी...............

चलते –चलते उम्र बीत गई,

अब बीत ना जाये ये रैना भी...........

Saturday, July 10, 2010

अगर है इश्क, तो.....................

न शरमाना ज़रुरी है,


न घबराना ज़रुरी है,

अगर है इश्क तो,

नज़र आना जरुरी है।

ये सारी एहतियातें,

वहतियातें,

सब वेबकूफी हैं,

अगर है इश्क तो,

हद से,

गुज़र जाना,

ज़रुरी है............।

Thursday, July 8, 2010

एक इवादत......................... मेरे इन्तकाल की.।

तन्हाइयों में जो ,


मेरे दिल का हाल पूछते हैं।

मेरी जिन्दगी से ,

एक बड़ा सवाल पूछते हैं

जो मुझे देते हैं,

मुहब्बत के बारे में मश़विरा,

मुहब्बत के बारे में मेरा ख्याल पूछते हैं........................

हमने तो मौत से, दो पल माँगे थे,

उनकी एक झलक पाने को,

और उनके दर पर गये

उन्हें मनाने को,

हमें तो उनकी रुश्वाई का,

अंदाजा भी नहीं था,

जो इवादत में मेरा इन्तकाल पूछते हैं..................................।

Wednesday, July 7, 2010

कीट हूँ,पतिंगा हूँ,ज़ान न्यौछावर दिये पर कर जाऊँगा...................................

मैं सूरज हूँ,


जला हूँ

रोशनी में,

पला हूँ

शाम होते-होते

ढला हूँ

ज़माने को रोशन

कर जाऊँगा.................

मै पानी हूँ,

वहा हूँ,

दर्दों को,

सहा हूँ

नदिय़ों में तन्हा,

रहा हूँ

आँसू बनकर आँखो से,

छलक जाऊँगा..............

प्रीत की

परीक्षा....

ना लेना मेरी,

बस इतनी सी,

थी चाहत मेरी,

प्रेमियों से

आगे मैं

निकल जाऊँगा..........

तुम जलते रहो,

दीपक की तरह,

पढते रहो,

रुपक की तरह,

मैं

कीट हूँ,

पतिंगा हूँ,

ज़ान न्यौछावर,

दिये पर,

यूँ ही,

कर जाऊँगा........................।

Tuesday, July 6, 2010

जिन्दगी जीने के केवल दो रास्ते हैं.............

हमें अपने इश्क का ,


हिसाब नहीं आता…………………..

और उनका पलटकर

कोई ज़बाब नहीं आता।

हम तो उनकी यादों में,

खोए रहते हैं अक्सर,

और उनको सोकर भी,

हमारा ख्वाब नहीं आता.................

शायद,

उन्हें इश्क,

करना नहीं आता………………..

और,

हमें इश्क के शिवा,

कुछ नहीं आता

जिन्दगी जीने के केवल दो रास्ते हैं

एक उन्हें नहीं आता....................

एक हमें नहीं आता.........................।

Friday, June 25, 2010

बो मिले ना मिले,मुहब्बत तुम करते रहना................

बो मिले ना मिले,


मुहब्बत तुम करते रहना................

डूब ना जाओ तब तलक,

आहें तुम भरते रहना......................

जिन्दा रहते हैं सब,

यहाँ मिलने की ख्वाहिश लेकर

होना पड़ जाए उसे मजबूर,

पल-पल तुम मरते रहना......................

गम भरे हैं तेरे,

इन दिल की गहराइयों में

रोते-रोते भर जाए समुन्दर,

पर तुम हँसते रहना........................

हैं इश्क के धागे बड़े नाजुक,

ये तुम्हें छोड़ देंगें

इबादत मानकर खुदा की,

उनमें तुम फँसते रहना...........................

कर रही है बो तेरा इन्तज़ार,

कहीं न कहीं

अश्क हों न उसके बरबाद,

तुम डरते रहना..............................

बो मिले ना मिले,

मुहब्बत तुम करते रहना................

मरने का मज़ा तो तब है,....................

कोई हँसा कर रोए ,

कोई रुला कर रोए,

कोई दिखा कर रोए,

कोई छुपा कर रोए,

तेरी हँसी में हँसे,लेकिन.........

तरस खा कर रोए,

आँसू सूख़ गए आँखो से,

पानी में नहा कर रोए,

दिल को न मिला सुकून,फिर भी

उनके खतों को ज़ला कर रोए,

मरने के वारे में,जब भी सोचा,

मौत की सच्चाई पर रोए,

लेकिन..................

मरने का मज़ा तो तब है,

ज़ब कातिल भी ज़ऩाज़े पर आकर रोए........................।

Saturday, June 12, 2010

अब तो,एक आँसू भी रुश्वा कर जाता है....................

बचपन के दिन भी कितने अच्छे थे,

तब तो केबल खिलौने टूटा करते थे................

बो,खुशियाँ भी,न जाने कैसी खुशियाँ थी,

कि तितलियों को पकड़कर उछला करते थे................

ख़ुद पाँव मारकर वारिश के पानी में,

हम अपने आप को भिगोया करते थे.....................

अब तो एक आँसू भी रुश्वा कर जाता है,

बचपन में तो दिल खोल कर रोया करते थे..................

Monday, June 7, 2010

अरमानों की भीड़ में एक अरमान..........मेरा भी

यही कोई एक दशक पहले की बात को कहने की कोशिश कर रहा हूँ,जो मेरे मन में थी पर आज लेखनी ने इस बात को अंजाम देने की जो ज़हमत उठाई उसके लिए इसका शुक्रगुज़ार हूँ।


बात उस दौर की है,जब देश में कारगिल युद्ध चल रहा था,शहादतों के संदेश आ रहे थे,तब में कक्षा 9 में पढता था,यह कविता उस समय जन्म ली,जब मेरे एक साथी को शहादत का संदेश मिला

अब मैं उन अरमानों को जाहिर करना चाहता हूँ,जो एक शहीद के बच्चे को अपने पिता से थे...................................

मेले पापा जल्दी आना,

याद तुम्हारी आती है,

वहुत दूर तुम चले गये हो,

मम्मी यही बताती है।

टॉफी लाना,बिस्कुट लाना

छोटी बाली गन भी लाना

मिलकर साथ लड़ेंगे दोनों,

मेले पापा जल्दी आना.............................।

Friday, June 4, 2010

कश़िश़ निगाहों की..................

उनकी निगाहों में कश़िश़ कुछ ,

इस कदर बाकी रही ।

इश्क के प्याले बने,

और आश़िकी साकी रही।

हर ऩजर में कत्ल,

सौ सौ बार होते हम गये।

दिल था घायल,

रुह थी घायल,

मौत बस बाकी रही...............................।

मम्मी, तुम नहीं समझोगी.................

जब छोटे थे हम,

बोलना नहीं जानते थे

शब्दों को,

तराज़ू पर ज़ुबान की

तोलना नहीं जानते थे

तब हमारी माँ ,

हमको बोलना सिखाती थी

शब्दों के अर्थ,

सिखाती, समझाती थी।

लेकिन,

आज जब

हम बड़े हो गये हैं

अपने पैरों पर

खड़े हो गये हैं,

हर बात को,

अपने हिसाब से

तोलने लगे हैं

जरुरत से ज्यादा,

बोलने लगे हैं

और, ज्ञापन देते हैं

मम्मी,

तुम नहीं समझोगी..........

Saturday, May 29, 2010

एक मुलाका़त ऐसी भी..................................

जाने अनज़ाने में एक दिन, मेरी उनसे मुलाकात हुई


बो भी चुप और हम भी चुप, बस दिल ही दिल में बात हुई

उनकी एक ऩजर, कर गई एक ऐसा असर

जैसे बिन सावन ,बिन वदली, आँगन में बरसात हुई

अब तो एक पल भी बो,मेरे बिन नहीं ज़ी सकते

अब तो उनकी एक अदा कलम,स्याही,दबात हुई

छुपा-छुपी के खेल में हम, दिल की बाजी हार गये

जीत-हार का खेल अनोखा,शतरंज की एक विसात हुई

मेरी आँखों के सामने, मेरे ख़त भी ज़ला दिये

दिल की किताब तो पढ ना पाये,अफसानों की क्या औकात हुई

हमें क्या पता था, वो इस क़दर रुश्बा हैं हमसे

इधर मौत की बात हुई,उधर मेंहदी की रात हुई

मेरी कब्र पर आते, तो शायद गम न होता

पर मेरी आखिरी इवादत खुदा से भी न वरदास्त हुई.....................

Friday, May 14, 2010

एक वादा करते हैं अपने आप से

एक वादा करते हैं अपने  आप  से


अपने  कल  और  आज  से

बगिया  के फूल  से

मिटटी  और  धुल  से

कुरान  और  गीता  से

सलमा  और  सीता  से

हम क्यों  जी  रहे  हैं

दूध  में  जहर  पी  रहे  हैं

बदनामी  से  घुट  रहे  हैं

रोज  सड़क पे  लुट  रहे  हैं

अपने  भविष्य से घबराने  लगे  हैं

सच्चाई से  कतराने  लगे  हैं

फिर  भी  वादा  करते  हैं

क्यों  की  जमीर  से  जो  डरते  हैं

फिर  जो  वादा  करते  है  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से  .....................

अब  तो अपने  को  रौशनी  में  भी  नहीं   पहचानते  हैं

हम  वोह  हैं  जो  प्रथ्वी  को  तीन  दागो  में  नापते  हैं

आज  तो  कोई  न  सलामत  घर  है

सबको  लुट  जाने  का  डर   है

आज  तो  लडकियों  पर  हमला  होता  है

और  मजहब  भी  बीच  सड़क  पर  रोता  है

जिस  पानी  को  पीते हैं

उसी  में  जहर  मिलते  हैं

अकुआ  जिसको  कहते  है 

दूध  के  दाम  में   विक्वाते  हैं

मानवता  अब  बची  कहा  हैं

अब  तो  सब  कुछ  ख़ाक  बचा  है

फिर  भी  वादा  करते  हैं  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से ......................

अब  तो  भीड़  में  भी  अकेले  हैं

जिन्होंने  वफ़ा  के   खेल  खेले  है

अब  तो  धोखा  देने  से  भी  बाज  नहीं

उनको  भी  पता  है  हमारे  पास  अलफ़ाज़  नहीं

दुनिया  में  हम  क्यों  जिया  करते  है

जब  वक़्त  नहीं  तो  रिश्ते  क्यों  बना  लिया  करते  हैं

पर  अब  एक  बात  समझ  मैं  आई  है

इस  दुनिया  में  बहुत  बेवफाई  है

अब  तो  हमें  भी  इसकी  परिभाषा  समझ  में  आने  लगी  है

जबसे  समझौता  एक्सप्रेस  पाकिस्तान  जाने  लगी  है

फिर  भी  वादा  करते  हैं  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से ........................

भारत  उन्नति  का  जो  सपना  रखते   हैं

वोह  भी  अब   चार बच्चे  पैदा   करते  हैं

संसद  में  नोट  के  लहराने  वालो

देश   को  बेचने  वाले  नक्कालो

इस  देश  को  क्यों  घुन  की  तरह  चाट  रहे  हो

क्यों  जात  पात  पे  वोट बैंक  बात  रहे  हो

सुनंदा  के  चक्कर  में  क्यों  लुट   रहे  हैं  थरूर

तैमूर  की  तरह  लूटना  चाते  हैं  देश  को  जर्रोर

अब  तो  खेल  को  भी  बना  दिया  एक  अखाडा  राजनीती  का

फिर  भी  कोई   जवाब  नै  hai इस  कूटनीति  का

फिर  भी  वादा  करते  है  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से ..........................

घूसखोरी  का  चारो  तरफ  जाल  है

फिर  भी  सरकार   बदहाल   है

जो  सर्कार   चलती  है  वैशाखियो  पर

क्यों  अपने  आप  को  बेच  रहे  हैं  जातियों  पर

इन  आखो  का  पानी  अब  क्यों   नहीं  mar  रहा  है

जो  खुले  मैदान  मैं  गर्दन  पर  बार  कर  रहा  है

जागो  भारत  जागो  पहचानो  अपनी  औकात

iiron  मिल  नै  सकता  कभी  गोल्ड  के  साथ

खून  को  युही  सडको  पर  mat    bahaao

varun   बहुत  हो  chuki  rajneeti  अब  kuchh  और  sunao

फिर  भी  वादा  करते  हैं  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से ...........................

Friday, April 23, 2010

खुद को पहचान

याद रख जो तुझसे झुककर मिला होगा
ज़ाहिर है उसका कद तुझसे बड़ा होगा
झुकने में बड़प्पन और शान है
वर्ना अकड़ना तो मुर्दे की पहचान है

Friday, April 16, 2010

मजबूरी...

नहीं खिंच रहा रिक्शा फिर भी खींच रहा हूँ
स्वेद कणों से घर की बगियां सींच रहा हूँ
नज़र डालते हैं लड़के जवान बेटी पर
मजबूरी में अपनी आखें मीच रहा हूँ.