चिट्ठाजगत रफ़्तार

Friday, May 14, 2010

एक वादा करते हैं अपने आप से

एक वादा करते हैं अपने  आप  से


अपने  कल  और  आज  से

बगिया  के फूल  से

मिटटी  और  धुल  से

कुरान  और  गीता  से

सलमा  और  सीता  से

हम क्यों  जी  रहे  हैं

दूध  में  जहर  पी  रहे  हैं

बदनामी  से  घुट  रहे  हैं

रोज  सड़क पे  लुट  रहे  हैं

अपने  भविष्य से घबराने  लगे  हैं

सच्चाई से  कतराने  लगे  हैं

फिर  भी  वादा  करते  हैं

क्यों  की  जमीर  से  जो  डरते  हैं

फिर  जो  वादा  करते  है  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से  .....................

अब  तो अपने  को  रौशनी  में  भी  नहीं   पहचानते  हैं

हम  वोह  हैं  जो  प्रथ्वी  को  तीन  दागो  में  नापते  हैं

आज  तो  कोई  न  सलामत  घर  है

सबको  लुट  जाने  का  डर   है

आज  तो  लडकियों  पर  हमला  होता  है

और  मजहब  भी  बीच  सड़क  पर  रोता  है

जिस  पानी  को  पीते हैं

उसी  में  जहर  मिलते  हैं

अकुआ  जिसको  कहते  है 

दूध  के  दाम  में   विक्वाते  हैं

मानवता  अब  बची  कहा  हैं

अब  तो  सब  कुछ  ख़ाक  बचा  है

फिर  भी  वादा  करते  हैं  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से ......................

अब  तो  भीड़  में  भी  अकेले  हैं

जिन्होंने  वफ़ा  के   खेल  खेले  है

अब  तो  धोखा  देने  से  भी  बाज  नहीं

उनको  भी  पता  है  हमारे  पास  अलफ़ाज़  नहीं

दुनिया  में  हम  क्यों  जिया  करते  है

जब  वक़्त  नहीं  तो  रिश्ते  क्यों  बना  लिया  करते  हैं

पर  अब  एक  बात  समझ  मैं  आई  है

इस  दुनिया  में  बहुत  बेवफाई  है

अब  तो  हमें  भी  इसकी  परिभाषा  समझ  में  आने  लगी  है

जबसे  समझौता  एक्सप्रेस  पाकिस्तान  जाने  लगी  है

फिर  भी  वादा  करते  हैं  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से ........................

भारत  उन्नति  का  जो  सपना  रखते   हैं

वोह  भी  अब   चार बच्चे  पैदा   करते  हैं

संसद  में  नोट  के  लहराने  वालो

देश   को  बेचने  वाले  नक्कालो

इस  देश  को  क्यों  घुन  की  तरह  चाट  रहे  हो

क्यों  जात  पात  पे  वोट बैंक  बात  रहे  हो

सुनंदा  के  चक्कर  में  क्यों  लुट   रहे  हैं  थरूर

तैमूर  की  तरह  लूटना  चाते  हैं  देश  को  जर्रोर

अब  तो  खेल  को  भी  बना  दिया  एक  अखाडा  राजनीती  का

फिर  भी  कोई   जवाब  नै  hai इस  कूटनीति  का

फिर  भी  वादा  करते  है  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से ..........................

घूसखोरी  का  चारो  तरफ  जाल  है

फिर  भी  सरकार   बदहाल   है

जो  सर्कार   चलती  है  वैशाखियो  पर

क्यों  अपने  आप  को  बेच  रहे  हैं  जातियों  पर

इन  आखो  का  पानी  अब  क्यों   नहीं  mar  रहा  है

जो  खुले  मैदान  मैं  गर्दन  पर  बार  कर  रहा  है

जागो  भारत  जागो  पहचानो  अपनी  औकात

iiron  मिल  नै  सकता  कभी  गोल्ड  के  साथ

खून  को  युही  सडको  पर  mat    bahaao

varun   बहुत  हो  chuki  rajneeti  अब  kuchh  और  sunao

फिर  भी  वादा  करते  हैं  अपने  आप  से

अपने  कल  और  आज  से ...........................

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