चिट्ठाजगत रफ़्तार

Friday, June 25, 2010

मरने का मज़ा तो तब है,....................

कोई हँसा कर रोए ,

कोई रुला कर रोए,

कोई दिखा कर रोए,

कोई छुपा कर रोए,

तेरी हँसी में हँसे,लेकिन.........

तरस खा कर रोए,

आँसू सूख़ गए आँखो से,

पानी में नहा कर रोए,

दिल को न मिला सुकून,फिर भी

उनके खतों को ज़ला कर रोए,

मरने के वारे में,जब भी सोचा,

मौत की सच्चाई पर रोए,

लेकिन..................

मरने का मज़ा तो तब है,

ज़ब कातिल भी ज़ऩाज़े पर आकर रोए........................।

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