वफ़ा करने वाले
वो आशिक कहाँ हैं।
जफ़ाएं,
सभी के दिलों में निहां हैं।।
पुलिस,
लीडरों की तवायफ़ बनी है।
शरीफ़ हैं सलाखों में,
गुन्डे रिहा हैं।।
अदालत दबी है,
हुकूमत के आगे।
कहने को,
कानून पलते वहां हैं।।
वकीलों के आगे,
न कोई टिका है।
सच और सफ़ेदी को,
करते सियाह हैं।।
प्रजातन्त्र गणतन्त्र,
बस नाम के हैं।
शरीफ़ आज जीते,
डरे से यहां हैं।।
अब खत्म कर दो,
चुन चुन के सारे।
दहशतफ़रोशों के,
अड्डे जहां हैं. ।।
Tuesday, December 7, 2010
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बेहतरीन रचना। एक ही कविता में सभी कुछ कह दिया है आपने। धन्यवाद।
ReplyDeleteपुलिस,
ReplyDeleteलीडरों की तवायफ़ बनी है।
शरीफ़ हैं सलाखों में,
गुन्डे रिहा हैं।।
बहुत ही बेहतरीन... जितनी भी तारीफ करूँ कम है...
है आज समय जागने का, सो रहे हो आज क्यूँ?
प्रजातन्त्र गणतन्त्र,
ReplyDeleteबस नाम के हैं।
शरीफ़ आज जीते,
डरे से यहां हैं।।
हर एक पँक्ति आज का सच ब्याँ करती हुयी। शुभकामनायें।
सच उगलती रचना ,बधाई
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