चारों तरफ फैला सन्नाटा
मन में उठता है ज्वार-भाटा
शायद इस रात की सुबह नहीं...........
खेल बह नहीं जिसमें जीत-हार हो
खेल तो वह है,जिसमें प्यार हो
वह मात ही क्या जिसकी शह नहीं............
जिंदगी, वक्त और हालातों के बीच अकेली है
सवालों के समुन्दर में उलझी एक पहेली है
वह मौत भी क्या ,जिसका कोई भय नहीं.............
जीवन यापन एक अनौखी लड़ाई है
संघर्ष में ही इसकी सच्चाई है
वह लड़ाई भी क्या,जिसके अन्त में विजय नहीं............
संघर्ष में ही इसकी सच्चाई है
ReplyDeleteवह लड़ाई भी क्या,जिसके अन्त में विजय नहीं
साधुवाद ,सुंदर रचना
संघर्ष में ही इसकी सच्चाई है|
ReplyDeleteयही सच्चाई है बहुत अच्छी रचना ,बधाई