चिट्ठाजगत रफ़्तार

Wednesday, July 7, 2010

कीट हूँ,पतिंगा हूँ,ज़ान न्यौछावर दिये पर कर जाऊँगा...................................

मैं सूरज हूँ,


जला हूँ

रोशनी में,

पला हूँ

शाम होते-होते

ढला हूँ

ज़माने को रोशन

कर जाऊँगा.................

मै पानी हूँ,

वहा हूँ,

दर्दों को,

सहा हूँ

नदिय़ों में तन्हा,

रहा हूँ

आँसू बनकर आँखो से,

छलक जाऊँगा..............

प्रीत की

परीक्षा....

ना लेना मेरी,

बस इतनी सी,

थी चाहत मेरी,

प्रेमियों से

आगे मैं

निकल जाऊँगा..........

तुम जलते रहो,

दीपक की तरह,

पढते रहो,

रुपक की तरह,

मैं

कीट हूँ,

पतिंगा हूँ,

ज़ान न्यौछावर,

दिये पर,

यूँ ही,

कर जाऊँगा........................।

1 comment:

  1. संवेदनशील रचना. बहुत अच्छी लगी. लिखते रहें.

    ReplyDelete